जो भी मैं कहना चाहूं बर्बाद करे अल्फ़ाज़ मेरे अल्फ़ाज़ मेरे कभी मुझे लगे की जैसे सारा ही ये जहाँ है जादू जो है भी और नही भी है ये फ़िज़ा, घटा, हवा, बहारें मुझे करे इशारे ये कैसे कहूँ? कहानी मैं इनकी जो भी मैं कहना चाहूं बर्बाद करे अल्फ़ाज़ मेरे अल्फ़ाज़ मेरे मैने ये भी सोचा है अक्सर तू भी मैं भी सभी है शीशे खुधी को हम सभी में देखें नहीं हूँ मैं हूँ मैं तो फिर भी सही ग़लत, तुम्हारा मैं मुझे पाना, पाना है खुद को जो भी मैं कहना चाहूं बर्बाद करे अल्फ़ाज़ मेरे अल्फ़ाज़ मेरे