बीरबल का जन्म ऐसा कहा जाता है कि एक बार अकबर अपना रास्ता भटक जाते हैं और महेश दास, उर्फ़ बीरबल उनकी मदद करते हैं और आगरा तक पहुँचाते हैं अकबर महेश दास की बुद्धिमानी से बहुत प्रभावित होते हैं और सोने की अंगूठी भेंट में देकर दरबार का सदस्य बनने का आमंत्रण देते हैं कुछ दिनों बाद महेश दास अकबर से मिलने आगरा पहुँचता है मुख्य द्वार का संतरी उसे अंदर जाने से रोक देता है महेश दास उसे वह अंगूठी दिखाते हैं जो अकबर ने भेंट में दी थी संतरी सोचता है कि इसे तो और भी उपहार मिलेंगे यह सोचकर संतरी कहता है "मैं तुम्हें एक ही शर्त पर अंदर जाने दूँगा यदि तुम अकबर से मिलने वाले उपहार का आधा हिस्सा मुझे दो" महेश दास संतरी की बात मान लेता है अकबर महेश दास को पहचान लेते हैं और खुश होकर कहते हैं कि बताओ तुम्हें क्या चाहिए? महेश दास कहता है कि जाहपनाह मुझे ५० कोड़े मारे जाएँ अजीब सी माँग को सुनकर सभी दरबारी चकित हो जाते हैं अकबर अपने पहरेदार को बुलाकर कहते हैं कि महेश दास को ५० कोड़े मारे जाएँ जब २५ कोड़े पड़ जाते हैं तब महेश दास कहता है कि बाक़ी के २५ कोड़े आपके मुख्य द्वार के संतरी को मारे जाएँ क्योंकि वह चाहता था कि आप मुझे जो भी उपहार दें उसका आधा हिस्सा उसे भी मिले अकबर सबकुछ समझ जाते हैं और संतरी को ५० कोड़े मारने और पाँच साल के कारावास की सज़ा सुनाते हैं एक बार फ़िर बादशाह अकबर बीरबल की होशियारी और बुद्धिमानी से खुश हो जाते हैं और उसे अपने दरबार के नौ रत्नों में शामिल कर लेते हैं अकबर महेश दास को नया नाम देते हैं, बीरबल अपनी हाज़िर जवाबी और बुद्धिमानी से वह अकबर के अच्छे मित्र बन जाते हैं