भारी बोझ एक बार, एक ग़रीब, बूढ़ी औरत मदद के लिए बीरबल के पास पहुँचती है वह कहती है, "जहाँ मेरे पूर्वजों का मकान है बादशाह अकबर उसी जगह पर अपना महल बनवाना चाहते हैं मेरी बहुत सारी यादें जुड़ी हैं अपने मकान से" बीरबल उस औरत को वादा करते हैं कि वह उसकी मदद अवश्य करेंगे जल्द ही उस जगह पर काम शुरू हो जाता है बीरबल भी अकबर के साथ उस जगह पर पहुँचते हैं वहाँ पर कई खाली बोरे के थैले पड़े होते हैं बीरबल एक बोरा लेकर उसमें मिट्टी भरने लगते हैं अकबर पूछते हैं कि ये क्या कर रहे हो बीरबल? बीरबल कहते हैं कि मैं पुण्य कमा रहा हूँ, जाहपनाह अकबर भी बीरबल के साथ मिट्टी भरने लगते हैं जब वह बोरी भर जाती है तो अकबर उसे उठाने की कोशिश करते हैं और कहते हैं, "इसमें तो कितना बोझ है" बीरबल कहता है, "जाहपनाह, आपको इसमें इतना बोझ लग रहा है तो सोचिए इस जगह पर जो मिट्टी है उसमें कितना बोझ होगा एक ग़रीब औरत की ज़मीन पर अपना महल बनवाकर आपकी अंतरात्मा पर कितना बोझ पड़ेगा" अकबर को अपनी ग़लती का एहसास हो जाता है और वह फ़ौरन उस जगह पर निर्माण कार्य को रुकवा देते हैं बूढ़ी महिला बीरबल को बहुत सारा धन्यवाद देती है