वो कोई ख़ौफ़ था या नाग था काला मुझे टख़नों से आ पकड़ा था जिसने मैं जब पहली दफ़ा तुमसे मिली थी क़दम, गड़ने लगे थे मेरे ज़मीं में तुम्हीं ने हाथ पकड़ा, और मुझे बाहर निकाला मुझे कन्धा दिया, सर टेकने को दिलासा पा के तुमसे साँस मेरी लौट आई वो मेरे ख़ौफ़ सारे जिनके लम्बे नाख़ून गले में चुभने लगे थे तुम्हीं ने काट फेंके सारे फन उनके मैं खुल के साँस लेने लग गई थी न माज़ी देखा न मुस्तक़बिल की सोची वो दो हफ्ते तुम्हारे साथ जी कर अलग इक ज़िन्दगी जी ली फ़क़त मैं थी फ़क़त तुम थे कुछ ऐसे रिश्ते भी होते हैं जिनकी उम्र होती है न कोई नाम होता है वो जीने के लिये कुछ लम्हे होते हैं। वो कोई ख़ौफ़ था या नाग था काला मुझे टख़नों से आ पकड़ा था जिसने मैं जब पहली दफ़ा तुमसे मिली थी