तन्हा लम्हा भी गुज़ारा महफ़िलों ने भी पुकारा साथ चाहे कोई ना हो तू है के ज़रूर आया वक़्त ने जब भी आज़माया छूटा सब, ना तुझे गवाया और चाहे ना कुछ बचा हो वास्ता तूने है निभाया तुझ को हमसफ़र हर दफ़ा साथ पाया मुसाफ़िर मैं हूँ, मुसाफ़िर तू है मुसाफ़िर मैं हूँ, मुसाफ़िर तू है जिस जगह मैं जाऊँ उस जगह तू दिखे है मुसाफ़िर मैं हूँ, मुसाफ़िर तू है बिन कहे, बिन सुने तू मेरे संग-संग है ना गिले, ना शिकवे मस्त तू, तू मलंग है किस क़दर शुक्र करूँ? क्या तेरा मैं जिक्र करूँ इल्तिजा है, "ना चाहूँ वो समा जिस में ना तू है" मुसाफ़िर मैं हूँ, मुसाफ़िर तू है मुसाफ़िर मैं हूँ, मुसाफ़िर तू है ♪ जिस जगह मैं जाऊँ उस जगह तू दिखे है