आप खड़े हो चौराहे पर, होके पसीने से तर बतर और बस का किराया है 100 रुपया और जेब में तुम्हारी हैं पचहतर फिर 5 रुपए की चाय पीकर 30 का चल पड़ो पैदल 30 का चल पड़ो पैदल फिर जो भी मिले उससे कहो ओ भाई आई लव टू ट्रैवल एक बार की बात है - धूप में चलता मैं, खुद को ही खलता मैं, थक हार कर कहीं से निकलता मैं क्या बताऊँ मेरे यार बहुत,लाचार बहुत था भार बहुत मेरे कंधे पे,(मेरे कंधे पे) दे दे के मौक़े मैंने खाए बड़े धोखे और सब कुछ खो के नहीं रहा था भरोसा किसी बंदे पे। (किसी बंदे पे) थक हार कर,झक मार कर बैठ गया मैं सड़क किनारे बूढ़े से बरगद के छाँव तले मुझे याद हो आए वो बचपन के झूले, वो दिन सारे भूले और मुस्कुराकर चढ़ गया उसकी डाल पे फिर भी रहा मैं उसके पाँव तले, हाँ पाँव तले वहाँ साँस लेते हुए मैंने देखा हर तरफ़ भूल गया मैं सब और ध्यान गया मेरा वहीं सामने डाल पे बाँहें डाल के बरगद की खाल पे चिपकी हुई थी एक छोटी सी, नन्ही सी, प्यारी सी एक गिलहरी उसकी पूँछ के वालों पे पड़ रही थी पत्तों से छनकर, और भी ठनकर इतर इतर कर छितर छित्तर कर धूप सुनहरी मैं डाल पे लेट गया और देखा बादल बन के पागल मुझको देख रहे थे भैया और देख रहे थे इधर उधर से कोयल कौव्वे, खातीचिड़ा, बुलबुल कमेड़ी और गोरेय्या और लगा मुझे के इतना कुछ तो है खुश होने को। अरे इतना कुछ तो है खुश होने को। अरे इतना कुछ तो है अभी खोने को इतना कुछ तो है खुश होने को अभी सही सलामत पाँव हैं, भरते अभी भी घाव हैं, करते अभी भी चाव हैं बूढ़े बुज़रुग मेरे अभी भी कभी कभी ही सही मिल जाता है दूध दही, पेट आधा भरा ही सही कहीं भूखे पड़े तो नहीं हैं। अभी पूरे कपड़े हैं, तन पे जकड़े हैं, लफड़े हैं जितने भी मुझसे बड़े तो नहीं हैं। अभी कुत्ते आवारा, समझ के इशारा, पास आ जाते हैं पूँछ हिलाते हैं आँखों में झांक के पास बैठ जाते हैं फेरता हूँ सिर पे हाथ मैं करता हूँ बात मैं कैसे हालात में, मैं हूँ जान जाते हैं अभी रुँधा है गला, लेता हूँ मैं गा, ख़ुशी का नहीं तो कोई गीत ग़मभरा और बहल जाता हूँ अभी छोड़ के सारे ताम झाम, मैं देख के कोई शाम ढलती, जल्दी, दफ़्तर से निकल कर मैं तो टहल आता हूँ। देखता हूँ आसमान का रंग नारंगी, बेढंगी है जितनी भी दुनिया, लगती है फिर भी मस्त मलंगी और सोचता हूँ मैं इतना कुछ तो है खुश होने को। अरे इतना कुछ तो है अभी खोने को। इतना कुछ तो है अभी होने को। अरे इतना कुछ तो है खुश होने को