तुझको याद है बता भूली बिसरी वो जगह उसमे लिपटी वो सुबह उस एक आंगन को बना तू ज़मीं और आसमां फिरता क्यूँ है यूँ तन्हा? दूरी जो दर्मियाँ है, तुझ में और आशियाँ में कर दे कम फ़ासले तू वो दस्तक तू दे यहाँ पे सुनते है दर वहाँ पे कर दे कम फ़ासले, ज़रा तू छोड़ ज़िद को फ़कीरा घर आजा फ़कीरा घर आजा फ़कीरा घर आजा अजनबी शहरों की तू क्यूँ बाहों में सोये? यूँ गिनता सितारे मझधार की है आदत पास में ही थे हमेशा किनारे तूने दिल पे था लिखा तेरे घर का पता सीधे अक्षरों में यूँ क्यूँ अकेला इस तरह? बाँधे मोह की डोरियाँ उड़ता दिल का पतंगा दूरी जो दर्मियाँ है, तुझ में और आशियाँ में कर दे कम फ़ासले तू वो दस्तक तू दे यहाँ पे सुनते है दर वहाँ पे कर दे कम फ़ासले, ज़रा तू छोड़ ज़िद को फ़कीरा घर आजा फ़कीरा घर आजा फ़कीरा घर आजा फ़कीरा घर आजा