ओ रे पिता, मैं तोसे बना हूँ बाँह पकड़ तोरे साथ बढ़ा हूँ चाह यही तोरे सब ग़म ले लूँ सारी ख़ुशी तोरे चरण संजो दूँ ओ रे पिता, सब तोपे लुटा दूँ आन मोरे तोरी शान बढ़ा दूँ ये गीत पेश उनको श्लोके की दुनिया जिनमें समाई जिनकी वजह से अस्तित्व वो प्रेम श्लोक की कमाई खुद हृदय काट के बिछा दिए मेरी हर इच्छाओं के पीछे मेरी लेखनी की औकात नहीं कि लिख दूँ उनकी खुदाई तेरी गोद में खुला मेरा प्रथम नयन तेरी उँगली थाम चला प्रथम कदम तुझसे ही सीखा हूँ वर्ण पहला तेरे हाथ से पकड़ा प्रथम कलम एक हसरत थी किस्मत से सहमत हों सपनों से तेरी भी इज्ज़त हो, शोहरत हो, पर्वत हो गर्वों के पर इस्तेमाल करा अपनो ने इंतकाल लगा सपनों के इश्तहार छपा कर्मों के इंतज़ार लगे वर्षों से इख़्तियार करा कर्जों के साथ मेरे तेरा काफी था हाँ पास मेरे कोई साथी था ना हाथ जोड़े नैनों में ग्लानि आज पेश मेरा माफ़ीनामा दूर हुआ तब हुआ एहसास कि अपने कौन पराए थे क्यूँ भटके अपनों को खोजे, जब बाप पीठ पे खड़ा है बे ओ रे पिता, मैं तोसे बना हूँ बाँह पकड़ तोरे साथ बढ़ा हूँ चाह यही तोरे सब ग़म ले लूँ सारी ख़ुशी तोरे चरण संजो दूँ ओ रे पिता, सब तोपे लुटा दूँ आन मोरे तोरी शान बढ़ा दूँ था जानता आपकी रज़ा, था कोशिश भी कर रहा अब समझे थोड़ा आप भी मेरा जीवन मेरी कला हुए सारे वारदात मेरे साथ, सपनों का कायनात बन गया अज़ाब रोया ज़ार-ज़ार मैं कितनी रात, कितने लहु जले तोरी बात काट अनबन है थोड़ी जानता हूँ, अभी ख़ाक राह में छानता हूँ कुछ भावनाएँ आहत की तो मैं गलती मेरी मानता हूँ हैं जो दायरे ना भाय रे, काहे रे है ये दूरी ये खाए रे, हाय रे, छाए रे, कैसी मजबूरी थी गलती यही मैंने स्वप्न चुना ना बात के आप की लाज रखी पर क्या सपनों को जन्म देके सपनों को ही मारना पाप नहीं कही ना रुका स्वप्न दोपहिया ना धीमा हुआ किसी घर्षण से अब तो पिताजी थोड़ा मुस्कुराओ, तोरा लाल आए दूरदर्शन पे छवि आपकी है बस मुझमें श्लोक आपका दर्पण है अब तो पिताजी थोड़ा मुस्कुराओ, तोरा लाल आए दूरदर्शन पे ओ रे पिता, मैं तोसे बना हूँ बाँह पकड़ तोरे साथ बढ़ा हूँ चाह यही तोरे सब ग़म ले लूँ सारी ख़शी तोरे चरण संजो दूँ ओ रे पिता, सब तोपे लुटा दूँ आन मोरे तोरी शान बढ़ा दूँ काशी घूमा, काबा घूमा ना मिलेया जगतार लाख ठोकरें खा के जाना कि तू ही है संसार कि तू ही है संसार, कि तू ही है संसार