आँखों में सुबह है तू जो आ मिला है रातों से मेरी लफ़्ज़ों में नशा है तू जो आ घुला है साँसों में मेरी ख़ामोश अदा करती जो बयाँ वो राज़ सुनूँगा मैं हर लफ़्ज़ मेरा बस ज़िक्र तेरा वो शामें बुनूँगा मैं हाज़िर तू, तू, तू जो है हाज़िर तू, तू, तू जो है प्यासे-प्यासे हैं किनारे तू लहर सी, माहिए राहतें तू, आदतें तू बस तू ही तू चाहिए धड़के जो यहाँ उसकी तू वजह, १०० बार कहूँगा मैं जानाँ, तू सुकूँ बस पढ़ मैं सकूँ, तुझे ऐसे लिखूँगा मैं हाज़िर तू, तू, तू जो है (तू जो है, ओ) हाज़िर तू, तू, तू जो है हाज़िर तू, तू, तू जो है