दिल तो पत्थर हो गया है, धड़कनें लाएँ कहाँ से? दिल तो पत्थर हो गया है, धड़कनें लाएँ कहाँ से? वक़्त हमको ले गया है, लौट कर आएँ कहाँ से? लगता है दिन क़रीब है ग़म से नजात के लगता है दिन क़रीब है ग़म से नजात के हम हाथ धोए बैठे हैं अपने दमाग़ से लगता है दिन क़रीब है ग़म से नजात के नाज़ुक बहुत है साँस की ज़ंजीर की जकड़ नाज़ुक बहुत है साँस की ज़ंजीर की जकड़ फ़िर भी कहाँ रिहाई है क़ैद-ए-हयात से? हम हाथ धोए बैठे हैं अपने दमाग़ से लगता है दिन क़रीब है ग़म से नजात के रुख़्सत के वक़्त तो हमारी बात मान लो रुख़्सत के वक़्त तो हमारी बात मान लो बाहर निकल भी आओ अब अपने नक़ाब से हम हाथ धोए बैठे हैं अपने दमाग़ से लगता है दिन क़रीब है ग़म से नजात के दो-चार दिन की बात है, हमको निबाह लो दो-चार दिन की बात है, हमको निबाह लो ज़्यादा नहीं बचे हैं दिन अपनी हयात के हम हाथ धोए बैठे हैं अपने दमाग़ से लगता है दिन क़रीब है ग़म से नजात के