ना जाने कब से उम्मीदें कुछ बाकी हैं मुझे फिर भी तेरी याद क्यूं आती है ना जाने कब से दूर जितना भी तुम मुझसे, पास तेरे मैं अब तो आदत सी है मुझको ऐसे जीने में जिन्दगी से कोई सिकवा, ही नहीं है अब तो जिन्दा हूँ मैं इस नीले आसमा में चाहत ऐसी है ये तेरी, बढती जाए आहट ऐसी है ये तेरी, मुझको सताए यादें गहरी हैं इतनी, दिल डूब जाए और आँखों में ये गम, नम बन जाए अब तो आदत सी है मुझको ऐसे जीने में सभी राते हैं सभी बाते हैं भुला दो उन्हें मिटा दो उन्हें अब तो आदत सी है मुझको