कबीरा कही, "सबे तो हरावे, माया खेल करे छलिया रूप धरे नाच नचावे ये सब उनको, जो जस कर्म करे छलिया रूप धरे" वो राह या मनवा जाने ढूँढ रहा है के कस्तूरी कुंडली बस्ती मृग ढूँढत है जे मन अंतर तू जा ढूँढ, सुन सके तो सुन मन गूँज हो अलख जगा, मन स्वयं-स्वयं में ही रे कबीरा कही, "सबे तो हरावे, माया खेल करे छलिया रूप धरे" ♪ मन मुस्कावे, जिऊ भुलकावे पी को प्रेम झरे लाज ना लागी, लाजो जागी धदली जे ही भरे ♪ मोह में बाँधे, सधे ना साधे चुलबुल चित्त धरे माया खेला है अलबेला खुल-खुल खेल करे मन अंतर तू जा ढूँढ, सुन सके तो सुन मन गूँज हो अलख जगा, मन स्वयं-स्वयं में रे कबीरा कही, "सबे तो हरावे, माया खेल करे छलिया रूप धरे नाच नचावे ये सब उनको जो जस कर्म करे छलिया रूप धरे"