बहर की झोली से बूंद चुराए नूर बादल के अंग से सावन आए रे कैसे मैं रहूँ बिन गाए ये सरसराती टिपटिपाती महफिलों में मेघ जो मल्हार के गीत सुनाए तो बूंदों की आहट से योवन आए रे कैसे मैं रहूँ बिन गाए ये सरसराती टिपटिपाती महफिलों में सावन आए रे मेघ छाए रे भीगे आंगन मे... देखो कारे बदरा चमके दमके बिजलियाॅ ये घना आसमां भीगा ये समा सावन आए रे मेघ छाए रे भीगे आंगन मे कैसे मैं रहूँ बिन गाए ये सरसराती टिपटिपाती महफिलों में सावन आए रे मेघ छाए रे भीगे आंगन मे...