ये रात ही सुबह बुलाएगी ये खामखा यूँ ही न जाएगी छाए हों बादल घने-घने राहों में जुगनू यही दिखाएगी ये रात ये रात ही सुबह बुलाएगी ये खामखा यूँ ही न जाएगी मुड़ने दो, मुड़ गए रास्तों में जो काफ़िले भीड़ में बढ़ गए मंज़िल से जो फ़ासले छोटी-सी है तो क्या? कोशिशों की तिली तेरी ना जले, माँग ले धारों से रोशनी एक बुलबुला है तू बेफ़िक्र बहता जा वक़्त दे वक़्त को ये वक़्त भी गुज़र जाएगा ये तेरी ज़िद से हार जाएगी ये रात ही सुबह बुलाएगी छाए हों बादल घने-घने राहों में जुगनू यही दिखाएगी ये रात, हाँ ये रात, ये रात ये रात