मुद्दत हुई है यार के पहलू में बैठे हुए मुद्दत हुई है उनकी आँखों में डूबे हुए फिर भी ना जाने क्यूँ उन के होंठों की हँसी ज़रा सी मेरे होंठों पे है उनके बालों की ख़ुशी ज़रा सी मेरे हाथों से लिपटी सी है हम तो घुटनों को सीने से लगाए सोते हैं और वो गैरों की बाँहों में ही होते हैं जिन्हें वो अपना कहते हैं मेरे ख़ुदा जब मैं तेरे दर पे आऊँ इतना करना, मैं मोहब्बत की छाँव पाऊँ ता-उम्र जलूँगा मैं उसकी चाह में ख़ाक हो चलूँगा मैं उसकी राह में आख़िर दूरियों में ही हम दोनों ही जलाए जाएँगे मुद्दत हुई है यार के पहलू में बैठे हुए मुद्दत हुई है उन की आँखों में डूबे हुए फिर भी ना जाने क्यूँ उन के होंठों की हँसी ज़रा सी मेरे होंठों पे है उन के बालों की ख़ुशी ज़रा सी मेरे हाथों से लिपटी सी है