ज़िंदगी की गोद में मद्धम झूल रहे हम बेहतरी के शोर में शामिल १०० तरह के रंग हंगामे यहाँ, यहीं सरगम शाम-ओ-सुबह एक नया मौसम हम लोगों से मिल के सीखे वफ़ा और मरहम दिल्लगी के सोज़ में ज़ाया प्यार का मौसम ♪ बचपन की आँखों ने जवानी को चाहा और चाहतों में चूर जवाँ हम हो गए एक हादसा दिल के क़रीब क्या आया उस हादसे में डूब कहाँ हम खो गए? कहाँ हम खो गए? कहाँ हम खो गए? ये क्या हम हो गए? कितने भी पूरे हों अरमाँ आख़िर ग़म रह ही जाते हैं हम गिनतियों में भी तन्हा आख़िर हम क्या ही चाहते हैं? उठें आँखों से पर्दे और जाग जाएँ हम खुद को डराने से अब बाज़ ना आएँ हम मोहलत है थोड़ी सी तो राज़ गाएँ हम हम ज़िंदगी की गोद में मद्धम झूल...