बारिशों की शामों में जो खिड़कियों से बादलों को देखते आँखों को मूँदे चूमते होंठों से बूँदें सौंधी ख़ुशबुएँ मिट्टी की थी भुलाती फ़िक्र कल की काग़ज़ों की कश्तियों में हम बहाते राज़ अपने कहाँ वो दिन गए? कहाँ वो खो गए? (खो गए) कहाँ वो दिन गए? कहाँ वो खो गए? ♪ कोहरे में डूबी सहर की हम निकलते सैर करने डूबने लगता जो सूरज ढूँढते चादर के कोने काँपती सर्दी की रातें आँच पे सिकते वो दाने खाट पर फिर लेट कर जो गुनगुनाते थे तराने कहाँ वो दिन गए? कहाँ वो खो गए? कहाँ वो दिन गए? कहाँ वो खो गए? अब ना दौड़ेंगे गली में हम पतंगों को पकड़ने दूर से ही देख लेंगे खेल सब अपनी पसंद के अब ना दौड़ेंगे गली में हम पतंगों को पकड़ने दूर से ही देख लेंगे खेल सब अपनी पसंद के और इस पार क्या है मिला? जेबें भरी हैं, सुकून कहाँ क्या हासिल हो के यहाँ? सब रह गया है देखो वहाँ और इस पार क्या है मिला? जेबें भरी हैं, सुकून कहाँ क्या हासिल हो के यहाँ? सब रह गया है देखो वहाँ