आँखों में मेरी तुम रह गए हो, साहिबा टूटा मैं, कुछ ऐसा कह गए हो, साहिबा आँखों से मेरी तुम बह गए हो, साहिबा रूठा मैं, कुछ ऐसा कह गए हो, साहिबा ये मेरा दिल चीखे जाए, क्यूँ हो गए हो पराए? तुम्हीं से बस थामे आए राब्ता क्यूँ मेरी रूह चीखे जाए? क्यूँ तेरी यादें ये तड़पाए? तेरे होके हो ना पाए, साहिबा साहिबा, साहिबा तू छूट के भी ना क्यूँ मुझसे छूट पाई है? तू जिस्म से उतर के रूह में समाई है ये ग़म तेरा कि ना असर करी दवाई है झुका दिया ये सर कि तू मेरी ख़ुदाई है दिल जला के घर तेरे शमा जलाई है सुकून मेरा छीन के तू मुस्कुराई है इश्क़ करके तौहमतें ही सर पे आई है मैं कोसता हूँ ख़ुद को जो तू याद आई है बस रह गए हैं अब निशाँ छोटी सी तेरी यादों के हम हो गए थे यूँ फ़ना छोटी सी तेरी बातों में तस्वीरों में ही ख़ुश थे हम, असल में थी वो साज़िशें तक़दीरों में ही ना लिखा, फ़िर क्यूँ माँगूँ मैं? साहिबा, दर्द-ए-दिल समझे ना साहिबा, इतना तड़पे मिर्ज़ा ये मेरा दिल चीखे जाए, क्यूँ हो गए हो पराए? तुम्हीं से बस थामे आए राब्ता क्यूँ मेरी रूह चीखे जाए? क्यूँ तेरी यादें ये तड़पाए? तेरे होके हो ना पाए, साहिबा साहिबा, साहिबा