कहने को जश्न-ए-बहारा है, इश्क़ ये देख के हैराँ है कहने को जश्न-ए-बहारा है, इश्क़ ये देख के हैराँ है फूल से खुशबू ख़फ़ा-ख़फ़ा है गुलशन में छुपा है कोई रंज फ़िज़ा की चिलमन में सारे सहमे नज़ारे हैं, सोए-सोए वक्त के धारे हैं और दिल में कोई खोई सी बातें हैं, हो-हो कहने को जश्न-ए-बहारा है, इश्क़ ये देख के हैराँ है फूल से खुशबू ख़फ़ा-ख़फ़ा है गुलशन में छुपा है कोई रंज फ़िज़ा की चिलमन में ♪ कैसे कहें क्या है सितम? सोचते हैं अब ये हम कोई कैसे कहे वो हैं या नहीं हमारे? करते तो हैं साथ सफ़र, फ़ासले हैं फिर भी मगर जैसे मिलते नहीं किसी दरिया के दो किनारे पास हैं, फ़िर भी पास नहीं हमको ये ग़म रास नहीं शीशे की एक दीवार है जैसे दरमियाँ कहने को जश्न-ए-बहारा है, इश्क़ ये देख के हैराँ है फूल से खुशबू ख़फ़ा-ख़फ़ा है गुलशन में छुपा है कोई रंज फ़िज़ा की चिलमन में