उसके होठों पर मेरा नाम जब आया होगा खुद को रुसवाई से फिर कैसे बचाया होगा सुन के यारों से अफसाना मेरी बर्बादी का क्या उसे अपना सितम याद ना आया होगा... मैं गम के घर में केद हूं बेघर नहीं हूं मैं मैं गम के घर में केद हूं बेघर नहीं हूं मैं मैं गम के घर में कैद ठोकर ना यूं लगा मुझे पत्थर नहीं हूं मैं मैं गम के घर में कैद हूं बेघर नहीं हूं मैं मैं गम... खुश रहो के देखते हैं मेरी तबाही को कोई सुहानी शाम का मंजर नहीं हूं मैं(2=), मैं गम के घर में कैद हूं बेघर नहीं हूं मैं है तस्करा दुखों का सारे शहर में2 अफसोस एक तेरी जबान पर नहीं हूं मैं2 ठोकर ना यूं लगा मुझे पत्थर नहीं हूं मैं2 मैं