कुछ बोलें, कुछ सोचें हम अपने-आप में
हम जो भी, जैसे भी, चलते हैं साथ में
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कुछ बोलें, कुछ सोचें हम अपने-आप में
हम जो भी, जैसे भी, चलते हैं साथ में
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कुछ बोलें, कुछ सोचें हम अपने-आप में
हम जो भी, जैसे भी, चलते हैं साथ में
ढूँढते नयी-नयी अपनी डगर
मंज़िलों की हमें अब नहीं है कोई ख़बर
ज़िंदा हैं हम आज पे कल की है किसको फ़िकर?
चारों दिशाओं में, इन हवाओं में, खुशबू जो महके हैं
इन फ़िज़ाओं में, इन घटाओं में, हर रंग गहरे हैं
चारों दिशाओं में, इन हवाओं में, खुशबू जो महके हैं
इन फ़िज़ाओं में, इन घटाओं में, हर रंग गहरे हैं
हर रंग गहरे हैं
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कुछ बातें हैं तुमसे ना हम कर सके
एक अज़नबी राज़ है
रंगों की चादर में गुम हो गए
जाने ये क्या बात है?
होते हो तुम पास फ़िर क्यूँ मगर दूरी का अहसास है?
ना किसी से की ग़ुज़ारिश, रहे हम भी रंग में
धुन अपनी भी नयी है, सब झूमे संग में
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ना किसी से की ग़ुज़ारिश, रहे हम भी रंग में
धुन अपनी भी नयी है, सब झूमे संग में
राह पे चल दिए यूँ बेफ़िर
खो गए जो मिले
जाने कहाँ को इस क़दर
साथ में वो नहीं
यादों में फ़िर भी मगर
चारों दिशाओं में, इन हवाओं में, खुशबू जो महके हैं
इन फ़िज़ाओं में, इन घटाओं में, हर रंग गहरे हैं
चारों दिशाओं में, इन हवाओं में, खुशबू जो महके हैं
इन फ़िज़ाओं में, इन घटाओं में, हर रंग गहरे हैं
हर रंग गहरे हैं
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कुछ बोलें
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