तुमको तो फ़ुर्सत ही नहीं मैं दिल की बतलाऊं क्या! तुम तो गये मैं हूँ यहीं ज़िद और ख़्वाबों में जूझ रहा थोड़ा बेज़ार तो साया है थोड़ा सा नाज़ तो गंवाया है कुछ नाक़ाबिल सा हुआ तो हूँ कुछ ना हांसिल दिल कर पाया है शायद ये दिल बेवफ़ाई ना समझ पाया है शायद ये दिल बेवफ़ाई ना समझ पाया है नासमझ पाया, नासमझ पाया, नासमझ दिल नासमझ पाया, नासमझ पाया, नासमझ दिल कि हाँ प्यार तो है पर दिल का धड़कना कहीं छिप गया है प्यार तो है पर कोई ज़िस्म में छिप के कहीं रो रहा है प्यार तो है कि दुनिया से अब भी छिपा के रखा है प्यार तो है कहीं सपना वो दिल में सजा के रखा है क्यूं? क्यूं? है क्यूं? क्यूं? तुमको तो फ़ुर्सत ही नहीं ग़ैर तुम्हें मैं बनाऊं क्या! नफ़रत से उम्मीद नहीं ख़ामोशी से कहता रहा थोड़ा बेज़ार तो साया है थोड़ा सा नाज़ तो गंवाया है कुछ नाक़ाबिल सा हुआ मैं हूँ कुछ ना हांसिल दिल कर पाया है शायद ये दिल बेवफ़ाई ना समझ पाया है शायद ये दिल बेवफ़ाई ना समझ पाया है नासमझ पाया, नासमझ पाया, नासमझ दिल नासमझ पाया, नासमझ पाया...