(बड़ा खयाल) एकताल विलंबित (स्थायी) मेरा मन बांध लीनो रे, हाँ रे इन जोगिया के साथ (अंतरा) सदा रंग कर मन करूं क्यों ना, इन प्राननाथ के हाथ। (छोटा खयाल) (स्थायी) सुगम रूप सुहावे सलोने मायी झनक जोत चित चोरत नित, सखियाँ संग मिल गावो रिझावो मायी (अंतरा) जो देखत चित सोही रिझरहत बिन देखे उमर जिया को लागे मायी। - विशाल माथुर -