जिसका कभी था ज़िक्र सा, मैंने वो सुबह देख ली
जिसका मिलना था कुफ़्र सा, मैंने वो सुबह देख ली
हर पल चलते ये इस शहर में, सोता नहीं किसी पहर मैं
जिसका सजदा है शुक्र सा, हाँ, मैंने वो सुबह देख ली
देख ली, देख ली, वो सुबह देख ली
देख ली, देख ली, वो सुबह देख ली
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खुद से भी मिलने को खुद से दौड़ है
मंज़िल नहीं, पर राहों का शोर है
रातों को चूमने तारे भी जल पड़े
सूरज को ढूँढने जुगनू भी चल पड़े
(जुगनू चल पड़े, जुगनू चल पड़े)
देख ली, देख ली, वो सुबह देख ली
देख ली, देख ली, वो सुबह देख ली
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आके आज़मा तू इत्मिनान से
मेरे जूनून का तू इम्तिहान ले
मेरी भी आँखों में कितने पर लगे
उड़ने को बेसबर, लेकिन हैं ये बँधे
(लेकिन हैं ये बँधे, लेकिन हैं ये बँधे)
देख ली, देख ली, वो सुबह देख ली
देख ली, देख ली, वो सुबह देख ली
♪
जिसका कभी था ज़िक्र सा, मैंने वो सुबह देख ली
जिसका मिलना था कुफ़्र सा, हो, मैंने वो सुबह देख ली
देख ली, देख ली, वो सुबह देख ली
देख ली, देख ली, वो सुबह देख ली
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