इस तरह सोई हैं आँखें... इस तरह सोई हैं आँखें जागते सपनों के साथ इस तरह सोई हैं आँखें जागते सपनों के साथ ख़ाहिशें लिपटी हो जैसे बंद दरवाज़ों के साथ इस तरह सोई हैं आँखें जागते सपनों के साथ ख़ाहिशें लिपटी हो जैसे बंद दरवाज़ों के साथ इस तरह सोई हैं आँखें... रात-भर होता रहा है उसके आने का गुमाँ रात-भर होता रहा है... रात-भर... रात-भर... रात-भर होता रहा है उसके आने का गुमाँ ऐसे टकराती रही ठंडी हवा परदों के साथ ऐसे टकराती रही ठंडी हवा परदों के साथ ख़ाहिशें लिपटी हो जैसे बंद दरवाज़ों के साथ इस तरह सोई हैं आँखें... शेर अर्ज़ है एक लम्हे का तअल्लुक़ उम्र-भर का रोग है एक लम्हे... एक लम्हे, लम्हे, लम्हे, लम्हे एक लम्हे का तअल्लुक़ उम्र-भर का रोग है दौड़ते फिरते रहोगे भागते लम्हों के साथ दौड़ते फिरते रहोगे भागते लम्हों के साथ ख़ाहिशें लिपटी हो जैसे बंद दरवाज़ों के साथ इस तरह सोई हैं आँखें... ग़ज़ल का आख़िरी शेर है एक सन्नाटा है फ़िर भी हर तरफ़ एक शोर है एक सन्नाटा है फ़िर भी... एक सन्नाटा... एक सन्नाटा... एक सन्नाटा है फ़िर भी हर तरफ़ एक शोर है एक सन्नाटा है फ़िर भी हर तरफ़ एक शोर है कितने चेहरे आँख में फैले हैं आवाज़ों के साथ कितने चेहरे आँख में फैले हैं आवाज़ों के साथ ख़ाहिशें लिपटी हो जैसे बंद दरवाज़ों के साथ इस तरह सोई हैं आँखें जागते सपनों के साथ इस तरह सोई हैं आँखें...