इश्क़ में जी को सब्र-ओ-ताब कहाँ इश्क़ में जी को सब्र-ओ-ताब कहाँ उस से आँखें लगीं तो ख़ाब कहाँ ♪ हस्ती अपनी है बीच में परदा हस्ती अपनी है बीच में परदा हम ना होवें तो फिर हिजाब कहाँ हम ना होवें तो फिर हिजाब कहाँ उस से आँखें लगीं तो ख़ाब कहाँ ♪ गिर्या-ए-शब से सुर्ख़ हैं आँखें गिर्या-ए-शब से सुर्ख़ हैं आँखें मुझ बला-नोश को शराब कहाँ मुझ बला-नोश को शराब कहाँ उस से आँखें लगीं तो ख़ाब कहाँ ♪ इश्क़ का घर है Meer से आबाद इश्क़ का घर है Meer से आबाद ऐसे फिर ख़ानुमा-ख़राब कहाँ ऐसे फिर ख़ानुमा-ख़राब कहाँ इश्क़ में जी को सब्र-ओ-ताब कहाँ हो, उस से आँखें लगीं तो ख़ाब कहाँ