मैं तो चलता ही रहा ओ रस्ता मुझे मिलता ही गया मैं तो चलता ही रहा ओ रस्ता मुझे मिलता ही गया ♪ कुछ हाथ देके भी खींचे चले थे कुछ साथ होके भी पीछे पड़े थे मैं संभलता ही रहा ओ रस्ता मुझे मिलता ही गया ♪ इक गाओं ऐसा आया रे बंधुआ प्यासे पड़े थे बड़े कल से थे सूखे कुआँ था अंधा पानी चढ़े ना पड़े कौवे ने कहीं से पत्थर जुटा के चोंच भर-भर के कुवे में फेंके गाओं फिर छलकता ही रहा ♪ इक शहर में माया और मुक्ति लुभाती थी वो बड़ी इक शहर में माया और मुक्ति लुभाती थी वो बड़ी सज धज के चौखट पे यूं मायुस दोनो थी खड़ी मुक्ति की माया मे गोल गोल घुमे कभी माया से मुक्ति की धाक ढोल बजे कभी दोनो ना पल्ले पड़े मैं क्या जानू रे शातिर हैं दोनो इक बिन दूजी ना लड़े माया और मुक्ति का मैने शहर छोडा रे बाहर ही मिली शांति, मैं उसी का हुआ रे
मैं चलता ही रहा ओ रस्ता मुझे मिलता ही गया मैं चलता ही रहा ओ रस्ता मुझे मिलता ही गया कुछ हाथ देके भी खींचे चले थे कुछ साथ होके भी पीछे पड़े थे मैं संभलता ही रहा ओर रस्ता मुझे मिलता ही गया मैं चलता ही रहा ओ रस्ता मुझे मिलता ही गया