सब को मालूम है मैं शराबी नहीं फिर भी कोई पिलाए तो मैं क्या करूँ? सब को मालूम है मैं शराबी नहीं फिर भी कोई पिलाए तो मैं क्या करूँ? सिर्फ़ इक बार नज़रों से नजरें मिलें सिर्फ़ इक बार नज़रों से नजरें मिलें सिर्फ़ इक बार नज़रों से नजरें मिलें सिर्फ़ इक बार नज़रों से नजरें मिलें सिर्फ़ इक बार नज़रों से नजरें मिलें सिर्फ़ इक बार नज़रों से नजरें मिलें और क़सम टूट जाए तो मैं क्या करूँ? और क़सम टूट जाए तो मैं क्या करूँ? सब को मालूम है मैं शराबी नहीं फिर भी कोई पिलाए तो मैं क्या करूँ? ♪ मुझ को मयकश समझते हैं सब बादा-कश क्योंकि उनकी तरह लड़खड़ाता हूँ मैं शायर कहते हैं कि मुझे हर कोई शराबी जो है वो मुझे देखता है तो वो सोचता है कि मैं भी उसी की तरह हिल रहा हूँ लेकिन सच्चाई क्या है मुझ को मयकश... हो, मुझ को महकश समझते हैं सब बादा-कश मुझ को महकश समझते हैं सब वादा कश क्योंकि उनकी तरह लड़खड़ाता हूँ मैं मेरी रग-रग में नशा मुहब्बत का है मेरी रग-रग में नशा मुहब्बत का है मेरी रग-रग में नशा मुहब्बत का है जो समझ में ना आए तो मैं क्या करूँ? जो समझ में ना आए तो मैं क्या करूँ? सब को मालूम है मैं शराबी नहीं फिर भी कोई पिलाए तो मैं क्या करूँ? ♪ हाल सुनकर मेरा सहमे-सहमे हैं वो हाल सुनकर मेरा सहमे-सहमे हैं वो कोई आया है, कोई आया है कोई आया है ज़ुल्फ़ें बिखेरे हुए हाल सुनकर मेरा, हाल सुनकर मेरा हाल सुनकर मेरा सहमे-सहमे हैं वो कोई आया है ज़ुल्फ़ें बिखेरे हुए मौत और ज़िंदगी दोनों हैरान हैं मौत और ज़िंदगी दोनों हैरान हैं मौत और ज़िंदगी दोनों हैरान हैं दम निकलने ना पाए तो मैं क्या करूँ? दम निकलने ना पाए तो मैं क्या करूँ? सब को मालूम है मैं शराबी नहीं फिर भी कोई पिलाए तो मैं क्या करूँ? ♪ ग़ज़ल का मकता पेश करने जा रहे हैं कैसी लत, कैसी चाहत, कहाँ की खता? बेखुदी में है अनवर खुदी का नशा कैसी लत, कैसी चाहत, कहाँ की खता? बेखुदी में है अनवर खुदी का नशा ज़िंदगी एक नशे के सिवा कुछ नहीं ज़िंदगी एक नशे के सिवा कुछ नहीं ज़िंदगी एक नशे के सिवा कुछ नहीं तुमको पीना ना आए तो मैं क्या करूँ? तुमको पीना ना आए तो मैं क्या करूँ? सिर्फ़ इक बार नज़रों से नजरें मिलें सिर्फ़ इक बार नज़रों से नजरें मिलें और क़सम टूट जाए तो मैं क्या करूँ? और क़सम टूट जाए तो मैं क्या करूँ? सब को मालूम है मैं शराबी नहीं फिर भी कोई पिलाए तो मैं क्या करूँ? मैं क्या करूँ, क्या करूँ, क्या करूँ?