सौ आसमानों में लिखी तक़दीर वो, बे-फ़िक्र बावरी। आंधी से वो, अब क्या डरे जब हो गई तूफ़ानों में भी हासिल आशिकी। तेरी पल भर की भनक और ख्वाहिशों में तू बिन रहनुमा, ढूंढे तुझे। सौ आसमान छोड़के आई जो चाहत घनी संग इश्क की लायी वो। सौ आसमान छोड़के आई वो राहत-ए-सुकून, ज़िन्दगी ने पाई जो। तेरे आने से इन हवाओं को भी रुख मालूम है तेरे होने पे फ़िज़ाओं का, खुमार है कुछ और है। तेरी तलाश में, हम खुद से फिर, यूँ वाक़िफ़ हुए। बेरुख से इस जहाँ में हम, काबिल बन गए। अंधियों से जो थी मुलाक़ातें काहे तुम ना साथ मैं थे अब ना उड़ना चाहूँ अकेली में। सौ आसमान छोड़के आई जो चाहत घनी संग इश्क की लायी वो। सौ आसमान छोड़के आई वो राहत-ए-सुकून, ज़िन्दगी ने पायी जो।