ख़ुद से लड़-लड़ के मैं ख़ुद से जीत गया थोड़ा ही सही अब खुल रहा हूँ मैं निकला तन्हा था तारों का साथ मिला एक नया एहसास मिला अब खुल रहा हूँ मैं बाँट ली है सारी ख़ुशी पोंछ के मेरे आँसू सभी दूर था मैं ख़ुद से कभी अब मिल रहा हूँ मैं ख़ुद से लड़-लड़ के मैं ख़ुद से जीत गया थोड़ा ही सही अब खुल रहा हूँ मैं बे-फ़िक्री के एक आँगन में लिपटे हैं हम एक चादर में तारों की एक बारात गई उसने हमसे एक बात कही "तू जो हँसे तो चलती हवा आँसू गिरे तो लागे सज़ा ख़ुद पे जो हो यक़ीन तेरा तो निकल बे-वजह" (निकल बे-वजह) पंछी झाँके हैं तेरा रस्ता ताके हैं तुझे रोज़ पुकारे हैं क्यूँ सुन रहा ना तू? एक सफ़र ख़ुद के लिए तय कर छोड़ पीछे सारे ख़ौफ़, अब फ़तह कर भूल जा कि क़िस्मत जैसा कुछ होता है जब ग़लती तेरी नहीं तो क्यों रोता है? ये सपनों का कमरा तेरा है, इसे ख़ुद सजा जा, किसी अंजान शहर में एक नया दोस्त बना तेरी जो लहरें कब से शांत पड़ी हैं, उनमें एक बवाल मचा मेरे मुसाफ़िर, अब तू निकल बे-वजह, निकल बे-वजह निकल बे-वजह, तू निकल बे-वजह निकल बे-वजह, तू निकल बे-वजह