देखो ना, ये क्या हो गया क्यूँ दरमियाँ, फ़ासला हो गया ठहरी हुई सी ये ज़िंदगी वक़्त ना जाने कहाँ खो गया यूँ ही कभी जो किसी मोड़ पर मिल जाएगा कोई हमसफ़र यादों का ये बस्ता मेरा छुुपा तो लोगे उससे, मगर लिखकर मुझको हथेली पे अपनी फिर से मिटा दोगे क्या? बिख़रे हुए वो रातों के तारे रखोगे अलमारी में क्या? ये दोनों के हालात हैं कि कोई भी ख़ुश तो नहीं चलो कर लें वादा फ़िर हम कि मिलना कहीं भी नहीं मिलना कहीं भी नहीं मिलना कहीं भी नहीं मिलना कहीं भी नहीं मिलना कहीं भी नहीं