कुछ तो बे-रब्त सा है वो पहले सा ज़िंदगी में कुछ ना रहा जागा दिल बे-वक़्त सा है वो ख़ाली सा वक़्त अब ना रहा क्यूँ फ़र्क़ बताए ना ये आईना? क्या सच और क्या ख़्वाब सा क्यूँ फ़र्क़ बताए ना ये आईना? क्या सच और क्या ख़्वाब सा क्यूँ बताए ना ये आईना? ♪ जो पल बेरंग से थे, वो तेरे रंग में रंगे हैं तू मेरा नसीब बन गया हाथों की मेरी लकीरें तेरे हाथों से मिल रही हैं हाँ, मुझे ना यक़ीं हो रहा क्या ख़्वाब है या हक़ीक़त है? इस पल में सब थम जाए ना क्यूँ फ़र्क़ बताए ना ये आईना? क्या सच और क्या ख़्वाब सा क्यूँ फ़र्क़ बताए ना ये आईना? क्या सच और क्या ख़्वाब सा क्यूँ बताए ना ये आईना? ♪ फ़र्क़ बताए ना ये आईना क्या सच और क्या ख़्वाब सा क्यूँ फ़र्क़ बताए ना ये आईना? क्या सच और क्या ख़्वाब सा क्यूँ बताए ना ये आईना?