जब आँखों का अश्क कभी पैग़ाम बनेगा तब ग़ुर्बत से उठने की तू बात करेगा कल तक जो काफ़िर था वो भी साथ चलेगा बरकत का ये बादल फ़िर बरसात बनेगा हर काम में 'गर अराम मिले तो कौन मिसाल बनाए? जब तक ना मिले ठोकर, तो बता, फ़िर चलना कौन सिखाए? आँखों में दिखी है आस, मैली सी हुई पोशाक अब तक ना दिखी मंज़िल, तो बता, फ़िर कौन ही राह दिखाए? सारा जग देखे मुझे हँसता हुआ मेरा मन जाने मैंने कितना सहा छोड़ा वो शहर जहाँ घर था मेरा मैं हूँ वो फ़क़ीरा जो है गिर के उठा सारा जग देखे मुझे हँसता हुआ मेरा मन जाने मैंने कितना सहा छोड़ा वो शहर जहाँ घर था मेरा मैं हूँ वो फ़क़ीरा जो है गिर के उठा देख के अपना अक्स तू ख़ुद से रोज़ लड़ेगा पैसे कमाने की फ़िर सबसे होड़ करेगा सारी जवानी जिस्मों में मदहोश रहेगा फ़िर बाक़ी उम्र तन्हाई देख अफ़सोस करेगा मिलते ही नहीं वो लोग जो यादें छोड़ चले हैं मुझपे लगा के दोष वो ख़ुद ख़ामोश खड़े हैं होश में आ नादान, वो कहते, "इश्क़ जिस्म है" कहते हैं इसे 'गर होश तो हम बेहोश भले हैं सारा जग देखे मुझे हँसता हुआ मेरा मन जाने मैंने कितना सहा छोड़ा वो शहर जहाँ घर था मेरा मैं हूँ वो फ़क़ीरा जो है गिर के उठा सारा जग देखे मुझे हँसता हुआ मेरा मन जाने मैंने कितना सहा छोड़ा वो शहर जहाँ घर था मेरा मैं हूँ वो फ़क़ीरा जो है गिर के उठा अब कोई शिकवा नहीं हर ज़ख़्म मरहम हुआ कोई साथ दे या नहीं मुझे इश्क़ ख़ुद से हुआ याद नहीं एहसास हूँ इश्क़ का ज़रिया राज़ हूँ ढूँढ रहा मुझको कहाँ? ख़ुद में मुकम्मल आज हूँ सारा जग देखे मुझे हँसता हुआ मेरा मन जाने मैंने कितना सहा छोड़ा वो शहर जहाँ घर था मेरा मैं हूँ वो फ़क़ीरा जो है गिर के उठा सारा जग देखे मुझे हँसता हुआ मेरा मन जाने मैंने कितना सहा छोड़ा वो शहर जहाँ घर था मेरा मैं हूँ वो फ़क़ीरा जो है गिर के उठा