अंधेरा अंधेरा है छाया सडक पे तेरा है साया मैं सोचूं पलटता है काया मैं बोलूं तोह आतिश है लाया परछाई ने मुझको है खाया चमक को तूने बुझाया कौन है तू क्यों बताता नहीं इस हीरे को तराशा नहीं सपनो को भी चुराता वही चेहरे पे थी निराशा कहीं ओह आता नहीं ओह जाता नहीं भूका है तू पर प्यासा नहीं सवेरा सवेरा ना आया है खाली आँखों में माया झूठा है वह सच बताता नहीं पापों को भी गिनाता वही प्यार को जो दबाता वही नरमी को भी जलाता वही घबराता वही ओह कतराता वही ऐसा है क्यों बाज़ आता नहीं