Kishore Kumar Hits

Darzi - Rog lyrics

Artist: Darzi

album: Awaaz


अरे पड़ गया जोग
ज़लील है भोग
नए नए लोग देखे
लग गया रोग
डर गए वह
घर गए वह
जहाँ भी चले गए
मर गए वह
छीनी है हसी
चुप रह गयी
ज़िंदा हूँ मगर
सांसें बंद हो गयी
कैसा है ये मोह
दिख गया जो
उसी के ही पीछे अब
पड़ गया वह


अरे लग गया रोग
शाम सवेरे दिल में
अंधेरा रहता है
काटती हूँ मैं खुदको
घाव गहरा लगता है
देखती हूँ शीशे में
आसूं बह जाती हूँ
मोटी या फिर काली
सबको मैं लगती हूँ
ली है मेरी जान
हूँ मैं परेशान
दिल भी है टुटा
अब टूटे अरमान
रोया आसमान
भीगा है जहान
मिट्टी भी है भूरी
भूरा मेरा है नकाब
कैसा है ये रोग
लगता है रोज़
जाता है नहीं कहीं
है ये घनघोर
चलती हवा
उड़ता बयान
पूछती हूँ अब भी
क्या नहीं मैं इंसान


क्या नहीं मैं इंसान
शाम सवेरे दिल में
अंधेरा रहता है
काटती हूँ मैं खुदको
घाव गहरा लगता है
देखती हूँ शीशे में
आसूं बह जाती हूँ
मोटी या फिर काली
सबको मैं लगती हूँ
जैसी भी हूँ काफी
मैं कब हो पाउंगी
खुद को ही मैं माफ़ी
अब कब दे पाउंगी
डूब मरूंगी लेकिन
मैं सब सह जाउंगी
खुद से ही मैं नफरत
अब ना कर पाउंगी

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