Kishore Kumar Hits

Darzi - Bazaar lyrics

Artist: Darzi

album: Awaaz


खाई मैं खाई
खाली मैं खाली
बिकी हथ तेरे
खुली बाज़ारी
ओह रातों की रानी
देखे दुनिया सारी
बजती है ताली
बारी बारी बारी
भीतर शहर में
एक बैठा है शिकारी
लगती है भारी
उसकी निशानी
वह जुआरी
पूरा जाली
करता है
मनमानी
ये ज़ंजीरें
उसी ने तोह है डाली
वह ही बेहलाये
वह सपना दिखाए
घर से उठाये
फिर अंधेरे में ले जाए
पास आये
मुस्कुराये
उसकी आँखें
तड़पायें
उसकी सांसें
मेरी गर्दन है जलाये
वह बिठाये
वह लिटाये
ये दीवारें
रटवाए
एक ही नाच
हर बारी वह नचाये
लगती मैं नकली
कटपुतली
जो उसकी तारें
बदन पे कसलीं
उसके इशारों
पे ही अब तो मैं हूँ चलती
कमरे में
इस कहर में
परदे में
लिपटे ही हम हैं
इस ज़मीं पे
सारे बिखरे हुए घम हैं
चार दीवारी
में रोज़गारी
देखो ये किस्मत
है कितनी काली
मेरी आज़ादी
इसने रोज़ है टाली

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